दिनांक 28 दिसंबर 2024 को गणित सप्ताह के अंतर्गत विद्यालय में वंदना स्थल पर विद्यालय के अध्यक्ष श्री अशोक गुप्ता जी के निर्देशन में एवं प्रधानाचार्य श्री मनोज कुमार मिश्र जी के मार्गदर्शन में रंगोली प्रतियोगिता का आयोजन किया। साथ ही मॉडल एवं चार्ट प्रतियोगिताओं का आयोजन भी किया गया।विद्यालय के वंदना सत्र में पत्रवाचन प्रतियोगिता का आयोजन किया गया। जिसमें महान गणितज्ञ श्री भास्कराचार्य जी एवं महावीराचार्य जी के जीवन परिचय एवं गणित में उनका योगदान पर बाल वर्ग, किशोर वर्ग एवं तरुण वर्ग के भैया बहनों ने प्रतिभाग़ किया। जिसमें उन्होंने बताया कि आचार्य महावीर (या महावीराचार्य) नौवीं सदी के भारत के प्रसिद्ध ज्योतिषविद् और गणितज्ञ थे। वे गुलबर्ग के निवासी थे। उन्होने क्रमचय-संचय (कम्बिनेटोरिक्स) पर बहुत उल्लेखनीय कार्य किये तथा विश्व में सबसे पहले क्रमचयों एवं संचयों (कंबिनेशन्स) की संख्या निकालने का सामान्यीकृत सूत्र प्रस्तुत किया। महावीराचार्य ने गणितसारसंग्रह नामक गणित ग्रन्थ की रचना की जिसमें बीजगणित एवं ज्यामिति के बहुत से विषयों (टॉपिक्स) की चर्चा है। उनके इस ग्रंथ का पावुलूरि मल्लन ने तेलुगू में ‘सारसंग्रह गणितम्’ नाम से अनुवाद किया।इन्होंने
क्रमचय एवं संचय की संख्या का सामान्य सूत्र प्रस्तुत किये।n-डिग्री वाले समीकरणों का हल प्रस्तुत किये।चक्रीय चतुर्भुज के कई गुणों (कैरेक्टरिस्टिक्स) को प्रकाशित किया।उन्होने बताया कि ऋणात्मक संख्याओं का वर्गमूल नहीं हो सकता।समान्तर श्रेणी के पदों के वर्ग वाली श्रेणी के n-पदों का योग निकाला।
दीर्घवृत्त की परिधि एवं क्षेत्रफल का अनुभवजन्य सूत्र (इम्पेरिकल फॉर्मूला) प्रस्तुत किया।
साथ ही बताया कि भास्कराचार्य या भास्कर द्वितीय (1114 – 1185) प्राचीन भारत के एक प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं ज्योतिषी थे। इनके द्वारा रचित मुख्य ग्रन्थ सिद्धान्त शिरोमणि है जिसमें लीलावती, बीजगणित, ग्रहगणित तथा गोलाध्याय नामक चार भाग हैं। ये चार भाग क्रमशः अंकगणित, बीजगणित, ग्रहों की गति से सम्बन्धित गणित तथा गोले से सम्बन्धित हैं। आधुनिक युग में धरती की गुरुत्वाकर्षण शक्ति (पदार्थों को अपनी ओर खींचने की शक्ति) की खोज का श्रेय न्यूटन को दिया जाता है। किंतु बहुत कम लोग जानते हैं कि गुरुत्वाकर्षण का रहस्य न्यूटन से भी कई सदियों पहले भास्कराचार्य ने उजागर कर दिया था। भास्कराचार्य ने अपने ‘सिद्धांतशिरोमणि’ ग्रंथ में पृथ्वी के गुरुत्वाकर्षण के बारे में लिखा है कि ‘पृथ्वी आकाशीय पदार्थों को विशिष्ट शक्ति से अपनी ओर खींचती है। इस कारण आकाशीय पिण्ड पृथ्वी पर गिरते हैं’। उन्होने करणकौतूहल नामक एक दूसरे ग्रन्थ की भी रचना की थी। ये अपने समय के सुप्रसिद्ध गणितज्ञ थे। कथित रूप से यह उज्जैन की वेधशाला के अध्यक्ष भी थे। उन्हें मध्यकालीन भारत का सर्वश्रेष्ठ गणितज्ञ माना जाता है।भास्कर एक मौलिक विचारक भी थे। वह प्रथम गणितज्ञ थे जिन्होनें पूरे आत्मविश्वास के साथ कहा था कि कोई संख्या जब शून्य से विभक्त की जाती है तो अनंत हो जाती है। किसी संख्या और अनंत का जोड़ भी अनंत होता है। खगोलविद् के रूप में भास्कर अपनी तात्कालिक गति की अवधारणा के लिए प्रसिद्ध हैं। इससे खगोल वैज्ञानिकों को ग्रहों की गति का सही-सही पता लगाने में मदद मिलती है।
बीजगणित में भास्कर ब्रह्मगुप्त को अपना गुरु मानते थे और उन्होंने ज्यादातर उनके काम को ही बढ़ाया। बीजगणित के समीकरण को हल करने में उन्होंने चक्रवाल का तरीका अपनाया। वह उनका एक महत्वपूर्ण योगदान है। छह शताब्दियों के पश्चात् यूरोपियन गणितज्ञों जैसे गेलोयस, यूलर और लगरांज ने इस तरीके की फिर से खोज की और `इनवर्स साइक्लिक’ कह कर पुकारा। किसी गोलार्ध का क्षेत्र और आयतन निश्चित करने के लिए समाकलन गणित द्वारा निकालने का वर्णन भी पहली बार इस पुस्तक में मिलता है। इसमें त्रिकोणमिति के कुछ महत्वपूर्ण सूत्र, प्रमेय तथा क्रमचय और संचय का विवरण मिलता है। गणित विभाग के सभी आचार्य श्री बलबीर शर्मा जी, श्री उमेश शर्मा जी, श्री रमाशंकर जी, श्री रौतन कौशिक जी, श्री प्रवीण शर्मा जी, श्री दुष्यंत शर्मा जी एवं श्री श्याम सुंदर जी ने अपनी अपनी कक्षा के भैया बहनों को इन प्रतियोगिताओं में प्रतिभा करने के लिए प्रेरित किया। प्रधानाचार्य श्री मनोज कुमार मिश्र जी ने सभी प्रतियोगी छात्र एवं छात्राओं का मूल्यांकन किया तथा सभी के कार्यों की सराहना की।