दिनांक 22 जुलाई 2023 को केशव माधव सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ककोड़ में महान क्रांतिकारी एवं स्वतंत्रता सेनानी देशभक्त श्री चंद्रशेखर आजाद एवं लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक की जयंती का कार्यक्रम मनाया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य श्री सुरेश गुप्ता जी एवं मुख्य वक्ता आचार्य श्री संदीप सोलंकी जी एवं विवेक शर्मा जी रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के साथ हुआ। कार्यक्रम में विद्यालय के भैया बहनों ने भाग लिया और चंद्रशेखर आजाद तथा लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक के जीवन पर प्रकाश डाला एवं देशभक्ति गीत गाए। आचार्य श्री विवेक शर्मा जी ने राष्ट्रवादी, शिक्षक, समाज सुधारक, वकील और एक स्वतंत्रता सेनानी बाल गंगाधर तिलक के जीवन पर प्रकाश डाला और उनके जीवन से जुड़ी घटनाओं व उनके द्वारा किए गए कार्यों की जानकारी विद्यार्थियों को दी और बताया कि लोकमान्य तिलक का जन्म 23 जुलाई 1856 को ब्रिटिश भारत में वर्तमान महाराष्ट्र स्थित रत्नागिरी जिले के एक गाँव चिखली में हुआ था। ये आधुनिक कालेज शिक्षा पाने वाली पहली भारतीय पीढ़ी के लोगों में से एक थे। इन्होंने कुछ समय तक स्कूल और कालेजों में गणित पढ़ाया। अंग्रेजी शिक्षा के ये घोर आलोचक थे और मानते थे कि यह भारतीय सभ्यता के प्रति अनादर सिखाती है। इन्होंने दक्षिण शिक्षा सोसायटी की स्थापना की ताकि भारत में शिक्षा का स्तर सुधरे।लोकमान्य तिलक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस में शामिल हुए लेकिन जल्द ही वे कांग्रेस के नरमपंथी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 1907 में कांग्रेस गरम दल और नरम दल में विभाजित हो गयी। गरम दल में लोकमान्य तिलक के साथ लाला लाजपत राय और श्री बिपिन चन्द्र पाल शामिल थे। इन तीनों को लाल-बाल-पाल के नाम से जाना जाने लगा। 1908 में लोकमान्य तिलक ने क्रान्तिकारी प्रफुल्ल और क्रान्तिकारी खुदीराम बोस के बम हमले का समर्थन किया जिसकी वजह से उन्हें बर्मा (अब म्यांमार) स्थित मांडले की जेल भेज दिया गया। जेल से छूटकर वे फिर कांग्रेस में शामिल हो गये और 1916 में एनी बेसेंट जी और मुहम्मद अली जिन्ना के समकालीन होम रूल लीग की स्थापना की।
वरिष्ठ आचार्य श्री सुरेश गुप्ता जी ने महान क्रांतिकारी देशभक्त श्री चंद्रशेखर आजाद के स्वतंत्रता की लड़ाई में योगदान का उल्लेख करते हुए बताया कि चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया। झांसी से पंद्रह किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में वह अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर आजाद दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ-साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी करते थे। वह धिमारपुर गाँव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे।1919 में हुए अमृतसर के जलियांवाला बाग नरसंहार ने देश के नवयुवकों को उद्वेलित कर दिया। चन्द्रशेखर उस समय पढाई कर रहे थे। जब गांधीजी ने सन् 1920 में असहयोग आन्दोलन का फरमान जारी किया तो वह आग ज्वालामुखी बनकर फट पड़ी और तमाम अन्य छात्रों की भाँति चन्द्रशेखर भी सडकों पर उतर आये। अपने विद्यालय के छात्रों के जत्थे के साथ इस आन्दोलन में भाग लेने पर वे पहली बार गिरफ़्तार हुए और उन्हें 15 बेतों की सज़ा मिली। विद्यालय के अध्यक्ष श्री अशोक गुप्ता जी ने इन महान देश भक्तों से प्रेरणा लेकर देश हित में कार्य करने की सलाह दी।
साथ ही कक्षा 8 की छात्रा भूमिका पाराशर ने अपने जन्मदिन पर पर्यावरण को स्वच्छ रखने के उद्देश्य से विद्यालय में पौधा भेंट किया।बहन भूमिका पाराशर एवं भैया निखिल गौतम को उनके जन्म दिवस पर विद्यालय परिवार ने दीर्घ आयु का आशीर्वाद दिया।