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दिनांक 10 मई 2024 को केशव माधव सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ककोड़ में भगवान परशुराम जी की जयंती का कार्यक्रम बड़े ही हर्षोल्लास के साथ मनाया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष विद्यालय के वरिष्ठ आचार्य श्री किशन शर्मा जी एवं मुख्य वक्ता आचार्य श्री मेघेंद्र सिंह जी रहे। कार्यक्रम का संचालन आचार्या बहन श्रीमती ममता शर्मा जी ने किया। कार्यक्रम का शुभारंभ द्वीप प्रज्ज्वलन एवम पुष्पार्चन के साथ हुआ।कार्यक्रम में विद्यालय के भैया बहनों ने भगवान परशुराम जी के जीवन पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता आचार्य जी ने कहा कि परशुराम जी त्रेता युग (रामायण काल) में एक ब्राह्मण ऋषि के यहाँ जन्मे थे। जो विष्णु के छठा अवतार हैं। पौरोणिक वृत्तान्तों के अनुसार उनका जन्म महर्षि भृगु के पुत्र महर्षि जमदग्नि द्वारा सम्पन्न पुत्रेष्टि यज्ञ से प्रसन्न देवराज इन्द्र के वरदान स्वरूप पत्नी रेणुका के गर्भ से वैशाख शुक्ल तृतीया को मध्यप्रदेश के इन्दौर जिला में ग्राम मानपुर के जानापाव पर्वत में हुआ। वे भगवान विष्णु के आवेशावतार हैं। कार्यक्रम के अध्यक्ष श्री किशन शर्मा जी ने बताया कि परशुराम संरक्षण के देवताधर्म के रक्षक, कर्म के दाता परब्रह्म हैं। महाभारत और विष्णुपुराण के अनुसार परशुराम जी का मूल नाम राम था किन्तु जब भगवान शिव ने उन्हें अपना परशु नामक अस्त्र प्रदान किया तभी से उनका नाम परशुराम जी हो गया। पितामह भृगु द्वारा सम्पन्न नामकरण संस्कार के अनन्तर राम कहलाए। वे जमदग्नि का पुत्र होने के कारण जामदग्न्य और शिवजी द्वारा प्रदत्त परशु धारण किये रहने के कारण वे परशुराम जी कहलाये। आरम्भिक शिक्षा महर्षि विश्वामित्र एवं ऋचीक के आश्रम में प्राप्त होने के साथ ही महर्षि ऋचीक से शार्ङ्ग नामक दिव्य वैष्णव धनुष और ब्रह्मर्षि कश्यप से विधिवत अविनाशी वैष्णव मन्त्र प्राप्त हुआ। तदनन्तर कैलाश गिरिश्रृंग पर स्थित भगवान शंकर के आश्रम में विद्या प्राप्त कर विशिष्ट दिव्यास्त्र विद्युदभि नामक परशु प्राप्त किया। शिवजी से उन्हें श्रीकृष्ण का त्रैलोक्य विजय कवच, स्तवराज स्तोत्र एवं मन्त्र कल्पतरु भी प्राप्त हुए। चक्रतीर्थ में किये कठिन तप से प्रसन्न हो भगवान विष्णु ने उन्हें त्रेता में रामावतार होने पर तेजोहरण के उपरान्त कल्पान्त पर्यन्त तपस्यारत भूलोक पर रहने का वर दिया। वे शस्त्रविद्या के महान गुरु थे। उन्होंने भीष्म, द्रोण व कर्ण को शस्त्रविद्या प्रदान की थी। उन्होंने एकादश छन्दयुक्त “शिव पंचत्वारिंशनाम स्तोत्र” भी लिखा। इच्छित फल-प्रदाता परशुराम गायत्री है-“ॐ जामदग्न्याय विद्महे महावीराय धीमहि, तन्नः परशुराम: प्रचोदयात्।” वे पुरुषों के लिये आजीवन एक पत्नीव्रत के पक्षधर थे। उन्होंने अत्रि की पत्नी अनसूया, अगस्त्य की पत्नी लोपामुद्रा व अपने प्रिय शिष्य अकृतवण के सहयोग से विराट नारी-जागृति-अभियान का संचालन भी किया था। अवशेष कार्यो में कल्कि अवतार होने पर उनका गुरुपद ग्रहण कर उन्हें शस्त्रविद्या प्रदान करना भी बताया गया है। विद्यालय के अध्यक्ष श्री अशोक गुप्ताजी, प्रबंधक श्री जगदीश प्रसाद ढौडियाल जी , प्रधानाचार्य श्री मनोज कुमार मिश्र जी ने कहा कि भगवान परशुराम की तरह सभी को विवेकपूर्ण कार्य करने चाहिए, माता-पिता का सम्मान करना चाहिए, न्याय को सर्वोपरि रखना चाहिए तथा दान की भावना अवश्य होनी चाहिए। आज के इस कार्यक्रम में विद्यालय के समस्त आचार्य बंधु, आचार्या बहनें एवं समस्त भैया बहन उपस्थित रहे।