




दिनांक 11 फरवरी 2025 को केशव माधव सरस्वती विद्या मंदिर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय ककोड में संत रविदास जयंती का कार्यक्रम मनाया गया। कार्यक्रम के अध्यक्ष विद्यालय के प्रधानाचार्य श्री मनोज कुमार मिश्र जी एवं मुख्य वक्ता आचार्या बहन श्रीमती ज्योत्सना जी रहीं। कार्यक्रम का शुभारंभ दीप प्रज्ज्वलन एवं पुष्पार्चन के साथ हुआ। कार्यक्रम में विद्यालय के भैया बहनों ने संत रविदास जी के जीवन पर प्रकाश डाला। मुख्य वक्ता आचार्य बहन श्रीमती ज्योत्सना जी ने बताया कि गुरू रविदास जी(रैदास) का जन्म काशी में माघ पूर्णिमा दिन रविवार को संवत 1433 को हुआ था उनका एक दोहा प्रचलित है। चौदह सौ तैंतीस कि माघ सुदी पन्दरास। दुखियों के कल्याण हित प्रगटे श्री गुरु रविदास जी । उनके पिता संतोख दास तथा माता का नाम कलसांं देवी था। उनकी पत्नी का नाम लोना देवी बताया जाता है।रैदास ने साधु-सन्तों की संगति से पर्याप्त ज्ञान प्राप्त किया था।संत रविदास जी जूते बनाने का काम किया करते थे औऱ ये उनका व्यवसाय था और अपना काम पूरी लगन तथा परिश्रम से करते थे और समय से काम को पूरा करने पर बहुत ध्यान देते थे। कई लोगों का मानना है कि संत रविदास जी का कोई गुरु नहीं था। कहा जाता है कि यह भारत की प्राचीन गौरवमयी बोद्ध परंपरा के अनुयायी थे और प्रच्छन्न बोद्ध थे इसका पता इनकी वाणी से चलता है ।इन्होंने धार्मिक अंधविश्वास और आडंबर से दूर रहने का संदेश दिया और कहा कि अगर मन पवित्र है तो गंगा में भी स्नान की आवश्यकता नहीं है ।”मन चंगा तो कठौती में गंगा” इनकी प्रसिद्ध उक्ति है जो इस बात पर प्रकाश डालती है । इस्लाम धर्म में फैली बुराइयों को भी इन्होंने समान रूप से अपनी अभिव्यक्ति में शामिल किया था । समयानुपालन की प्रवृति तथा मधुर व्यवहार के कारण उनके सम्पर्क में आने वाले लोग भी बहुत प्रसन्न रहते थे। आचार्या बहन श्रीमती ममता शर्मा जी ने बताया कि प्रारम्भ से ही रविदास जी बहुत परोपकारी तथा दयालु थे और दूसरों की सहायता करना उनका स्वभाव बन गया था। साधु-सन्तों की सहायता करने में उनको विशेष आनन्द मिलता था। वे उन्हें प्राय: मूल्य लिये बिना जूते भेंट कर दिया करते थे। उनके स्वभाव के कारण उनके माता-पिता उनसे अप्रसन्न रहते थे। कुछ समय बाद उन्होंने रविदास तथा उनकी पत्नी को अपने घर से निकाल दिया। रविदास पड़ोस में ही अपने लिए एक अलग इमारत बनाकर तत्परता से अपने व्यवसाय का काम करते थे और शेष समय ईश्वर-भजन तथा साधु-सन्तों के सत्संग में व्यतीत करते थे। विद्यालय के प्रबंधक श्री जगदीश प्रसाद ढौंडियाल जी ने रैदास ने ऊँच-नीच की भावना तथा ईश्वर-भक्ति के नाम पर किये जाने वाले विवाद को सारहीन तथा निरर्थक बताया और सबको परस्पर मिलजुल कर प्रेमपूर्वक रहने का उपदेश दिया। विद्यालय के कोषाध्यक्ष दिनेश सिंघल जी एवं सहव्यवस्थापक श्री कालीचरण जी ने बताया कि विचारों की श्रेष्ठता, समाज के हित की भावना से प्रेरित कार्य तथा सद्व्यवहार जैसे गुण ही मनुष्य को महान बनाने में सहायक होते हैं। आज के इस कार्यक्रम में विद्यालय के समस्त आचार्य बंधु, आचार्या बहने एवं विद्यालय के समस्त भैया बहन उपस्थित रहे।